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विषय नं. 43 - मनुष्य के 3 प्राकार के स्वभाव



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 9
श्लोक

सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत ॥9॥

सत्त्वम् सुखे सन्जयति रजः कर्मणि भारत |
ज्ञानम् आवृत्य तु तमः प्रमादे सन्जयति उत ।।९।।

शब्दार्थ

(उत) ईश्वर ने कहा (भारत) हे भारत (अर्जुन) ( सत्त्वम् ) सत्व गुण (सुखे) सुख शान्ति (से) (सन्जयति) बाँधता है (रज:) रजो गुण (कर्मणि) (निरंतर) काम में लगाता है (तु) किन्तु (तम) तमोगुण (ज्ञानम् आवृत्य) ज्ञान को ढक देता है (और) (प्रमादे) लापरवाही (से) (सन्जयति) बाँध देता है।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, हे भारत (अर्जुन)! सत्व गुण सुख शान्ति (से) बाँधता है। रजो गुण (निरंतर) काम में लगाता है। किन्तु तमोगुण ज्ञान को ढक देता है, (और) लापरवाही (से) बाँध देता है।