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विषय नं. 43 - मनुष्य के 3 प्राकार के स्वभाव



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 10
श्लोक

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत ।
रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा ॥10॥

रजः तमः च अभिभूय सत्वम् भवति भारत ।
रजः सत्वम् तमः च एव तमः सत्वम् रजः तथा ।।१०।।

शब्दार्थ

(भारत) हे भारत (अर्जुन) (सत्वम्) (कभी) सत्वगुण (रज: तम:) रजो गुण और तमो गुण (अभिभूय) को दबाकर (प्रमुख/प्रबल) (भवति) हो जाती है। (च) और (इसी तरह कभी) (रज:) रजो गुण (सत्त्वम् तमः) सत्व गुण और तमो गुण (में आगे बढ़ जाती है) (च एवं) और (इस तरह कभी) (तम:) तमो गुण (सत्वम् रजः तथा) सत्व गुण और रजो गुण से आगे बढ़ जाती है।

अनुवाद

हे भारत (अर्जुन)। (कभी) सत्वगुण रजो गुण और तमो गुण को दबाकर प्रबल हो जाती है। और इसी तरह कभी रजो गुण सत्व गुण और तमो गुण (से आगे बढ़ जाती है) और इस तरह कभी तमो गुण सत्व गुण और रजो गुण से आगे बढ़ जाती है।