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विषय नं. 43 - मनुष्य के 3 प्राकार के स्वभाव



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 11
श्लोक

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ॥11॥

सर्व-द्वारेषु देहे अस्मिन् प्रकाशः उपजायते ।
ज्ञानम् यदा तदा विद्यात् विवृदधम् सत्वम् इति उत् ।।११।।

शब्दार्थ

(इति) (ईश्वर) इस तरह (उत) कर रहा है कि (यदा) जब (अस्मिन्) इस (देहे) शरीर के (सर्व) सारे (द्वारेषु) द्वारों में (ज्ञानम्) ज्ञान का (प्रकाश:) प्रकाश (उपजायते) प्रकट होने लगे (तदा) तब (विद्यात्) यह समझ लो कि (सत्वम्) सत्व गुण (विवृद्धम्) बढ़ा हुआ है।

अनुवाद

(ईश्वर) इस तरह कह रहा है कि जब इस शरीर के सारे द्वारों में ज्ञान का प्रकाश प्रकट होने लगे, तब यह समझ लो कि सत्व गुण बढ़ा हुआ है। (शरीर के द्वारों में ज्ञान का प्रकाश प्रकट होने का अर्थ है कि शरीर के अंग धार्मिक ज्ञान के अनुसार ही काम करने लगे।)