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विषय नं. 43 - मनुष्य के 3 प्राकार के स्वभाव



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 16
श्लोक

कर्मणः सुकृतस्याहुः : सात्त्विकं निर्मलं फलम् । रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम् ॥16॥

कर्मणः सुकृतस्य आहुः सात्विकम् निर्मलम् फलम् ।
रजसः तु फलम् दुःखम् अज्ञानम् तमसः फलम् ।।१६।।

शब्दार्थ

(आहु) ईश्वर ने कहा (सात्विकम्) सत्व गुण के कारण (सु-कर्मण) शुभ कर्म (कृतस्य) होते हैं (फलम्) और उनका फल भी (निर्मलम्) निर्मल (पवित्र होता है) (रजस:) रजो गुण के कारण (किए गए कर्मों का) (फलम्) फल (परिणाम) (दुःखम् ) कष्ट वाला होता है। (और) (तमसः) तमो गुण के कारण (किए गए कर्मों का) (फलम्) फल (परिणाम) (अज्ञानम्) अज्ञान (मूर्खता) ही होता है।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा सत्व गुण के कारण शुभ कर्म होते हैं और उनका फल भी निर्मल पवित्र होता है। रजो गुण के कारण किए गए कर्मों का फल (परिणाम) कष्ट वाला होता है। (और) तमो गुण के कारण (किए गए कर्मों का) फल (परिणाम) अज्ञान ही होता है।