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विषय नं. 43 - मनुष्य के 3 प्राकार के स्वभाव



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान् । जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते ॥20॥

गुणान् एतान् अतीत्य त्रीन् देही देह समुद्धवान ।
जन्म मृत्यु जरा दुःखै: विमुक्त: अमृतम् अश्नुते ।।२०।।

शब्दार्थ

(एतान्) (जब कोई व्यक्ति) इन (त्रीन्) तीनों (गुणान्) गुणों को (अतीत्य) छोड़ देता है (जो) (देही) मनुष्य के (देह) शरीर से (समुद्धवान) से जुड़ी हुई है (विमुक्तः) तो वह मुक्त हो जाता है (जन्म) जन्म (मृत्यु) मृत्यु (जरा) वृद्धावस्था (बुढ़ापा) और (दु:खै:) दु:ख से (अश्नुते) और प्राप्त करता है (अमृतम्) वह स्थान जहाँ मृत्यु नहीं (अर्थात स्वर्ग) |

अनुवाद

(जब कोई व्यक्ति) इन तीनों गुणों को छोड़ देता है (जो) मनुष्य के शरीर से जुड़ी हुई है, तो वह मुक्त हो जाता है जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था (बुढ़ापा), और दुःख से और प्राप्त करता है वह स्थान जहाँ मृत्यु नहीं (अर्थात स्वर्ग)

नोट

(सत्व गुण क्यों छोड़ना चाहिए इस बात को समझने के लिए नोट नं.N-५ पढ़िए।)