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विषय नं. 43 - मनुष्य के 3 प्राकार के स्वभाव



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 40
श्लोक

न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः । सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिःस्यात्त्रिभिर्गुणैः॥40॥

नतत् अस्ति पृथिव्याम् वा दिवि देवेषु वा ।
पुनः सत्त्वम् प्रकृति-जैः मुक्तम् यत् एभिः स्यात् त्रिभिः गुणैः ।।४० ।।

शब्दार्थ

(तत्) वह (मनुष्य) (पृथिव्याम्) जो पृथ्वी पर (अस्ति) हैं (दिवि देवेषु) और आध्यात्मिक प्राणी (जिन्न, यक्ष, इत्यादी) (वा) और (पुन: सत्वम्) बार बार सत्कर्म करने वाले ऋषि मुनि (वली) (प्रकृति) (जिस किसी को ईश्वर ने अपनी) प्राकृतिक शक्ति (जै:) जन्म दिया है (यत्) वह (त्रिभिः गुणैः) तीन प्रकार के गुणों के (एभिः) प्रभाव से (मुक्तम्) मुक्त (न) नहीं (स्यात्) हैं।

अनुवाद

वह (मनुष्य) जो पृथ्वी पर हैं, और आध्यात्मिक प्राणी, जिन्न, यक्ष, इत्यादी, और बार बार सत्कर्म करने वाले ऋषि मुनि (वली), (जिस किसी को ईश्वर ने अपनी) प्राकृतिक शक्ति से जन्म दिया है, वह तीन प्रकार के गुणों के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं।