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विषय नं. 45 - दृष्ट निश्चय का वर्णन



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 34
श्लोक

यया तु धर्मकामार्थान्धत्या धारयतेऽर्जुन । प्रसङ्गेन फलाकाङ्क्षी धृतिः सा पार्थ राजसी॥34॥

यया तु धर्म काम अर्थान् धृत्या धारयते अर्जुन। प्रसडेन फल-अकाङ्क्षी धृतिः सा पार्थ राजसी
।। ३४ ।।

शब्दार्थ

(अर्जुन) हे अर्जुन (यथा) अगर (कोई) (धृत्या) दृढ़ संकल्प (धारयते) अपनाता है (धर्म) धार्मिक काम को करने का (काम) अपने मन की इच्छा को पूरा करने के काम को करने का (अर्थान्) या संसारी काम को करने का (तु) किन्तु (फल) फल की (अकाङ्क्षी) आशा (के साथ) (स) (तो उसका) वह (धृतिः) दृढ़ संकल्प (राजसी) रजो गुण से प्रेरित माना जाएगा।

अनुवाद

हे अर्जुन यदि (कोई ) दृढ़ संकल्प अपनाता है धार्मिक काम को करने का, अपने मन की इच्छा को पूरा करने के काम को करने का, या संसारी काम को करने का। किन्तु फल की आशा के साथ, तो उसका वह दृढ़ संकल्प रजो गुण से प्रेरित माना जाएगा।