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विषय नं. 4 - ईश्वर का परिचय



अध्याय नं. 15 ,श्लोक नं. 14
श्लोक

सर्वाः सोमो भूत्वा अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्॥14॥

अहम् वैश्वानरः भूत्वा प्राणिनाम् देहम् आश्रितः प्राण अपान समायुक्तः पचामि अन्नम् चतु: विधम् ।।१४।।

शब्दार्थ

(अहम) मैं (प्राणिनाम्) प्राणियों के (देहा) शरीर में (वैश्वानरः) पाचन शक्ति की अग्नि (भुत्वा) के रुप में (आश्रितः) रहता हूँ (प्राण) अन्दर आने वाली सांस (अपान) (और) बाहर जाने वाली (सांसों) (का) (समायुक्त) संतुलन (मुझसे है) (चतु) चारों (विधम्) प्रकार के (अन्नम्) अन्न (पचामि) (मेरे कारण ही) पचते हैं।

अनुवाद

मैं प्राणियों के शरीर में पाचन शक्ति की अग्नि के रुप में रहता हूँ। अन्दर आने वाली सांस (और) बाहर जाने वाली (का) संतुलन (मुझसे है)। चारों प्रकार के अन्न (मेरे कारण ही) पचते हैं।