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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 5 ,श्लोक नं. 7
श्लोक

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः । सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥7॥

योगयुक्त: विशुद्ध आत्मा विजित-आत्मा जित इन्द्रियः । सर्व-भूत आत्म-भूत-आत्मा कुर्वन् अपि न लिप्यते ।। ७ ।।

शब्दार्थ

(योगयुक्तः) वह जो ईश्वर की प्रार्थना में लगा हुआ है (विशुद्ध-आत्मा) वह जिसके सोच है विचार पवित्र हैं (विजित आत्मा) वह जिसने अपनी चाह (मन) को वश में कर लिया है। (जित-इन्द्रियः) वह जिसने अपने इन्द्रियों को वश में कर लिया है। (भूत-आत्मा) (वह जिसका विश्वास है की) मनुष्य का ईश्वर ही (सर्व-भूत-आत्म) सारे प्राणियों का ईश्वर है। (अपि) नि:संदेह (कुर्वन) (वह व्यक्ति संसार के सारे) कर्म करता है (किन्तु) (न-लिप्यते) (पाप में) लिप्त नहीं होता (पाप में नहीं फसता ) । (श्लोक नं. ५.१० में भी ऐसा ही कथन है)

अनुवाद

वह जो ईश्वर की प्रार्थना में लगा हुआ है। वह जिसके सोच-विचार पवित्र हैं। वह जिसने अपनी इच्छाओं को वश में कर लिया है। वह जिसने अपने इन्द्रियों को वश में कर लिया है। (वह जिसका विश्वास है कि) मनुष्य का ईश्वर ही सारे प्राणियों का ईश्वर है। नि:संदेह (वह व्यक्ति संसार के सारे) कर्म करता है (किन्तु) (पाप में) लिप्त नहीं होता (पाप में नहीं फंसता ) ।