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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 13
श्लोक

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम् ॥13॥

महा-आत्मनः तु माम् पार्थ दैवीम् प्रकृतिम् आश्रिताः । भजन्ति अनन्य मनसः ज्ञात्वा भूत आदिम् अव्ययम् ।।१३।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन! (महा-आत्मनः) ज्ञानी, मुनि पवित्र लोग तु निःसंदेह (ज्ञात्वा) इस ज्ञान के साथ की (भूत) मैं प्राणियों का ( आदिम) आरम्भ करने वाला (रचना करने वाला) (अव्ययम्) अविनाशी (ईश्वर हूँ) (माम्) मेरी (दैवीम्) दैविक (प्रकृतिम्) प्रकृति शक्ति पर (आश्रिताः) श्रद्धा रखते हैं (शरण लेते हैं) (अनन्य मनसः) और मन को दुसरों की ओर भटकाए बिना ( भजन्ति ) मेरी प्रार्थना करते हैं।

अनुवाद

हे अर्जुन ज्ञानी, मुनि, पवित्र लोग नि:संदेह इस ज्ञान के साथ कि मैं प्राणियों का आरम्भ करने वाला, रचना करने वाला अविनाशी (ईश्वर हूँ) । मेरी दैविक प्रकृती शक्ति पर श्रद्धा रखते हैं ( शरण लेते हैं)। और मन को दुसरों की ओर भटकाए बिना मेरी प्रार्थना करते हैं।