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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 30
श्लोक

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् । साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥30॥

अपि चेत् सु-दुराचारः भजते माम् अनन्य-भाक। साधुः एव सः मन्तव्यः सम्यक व्यवसितः हि सः ।।३०।।

शब्दार्थ

(चेत) अगर (सु-दुराचार) अत्यन्त दुराचारी (पापी) (भजते) श्रद्धा रखता है (माम् ) मुझमें (अनन्य भाक) और अनन्य (देवताओं) की भक्ति नहीं करता (एवं) (तो) नि:संदेह (सः) उसे (साधुः) पवित्र व्यक्ति (मुनि) (मन्तव्य) मानना चाहिए (हि) नि:संदेह (सः) वह (सम्यक) सही (परिपूर्ण) (व्यवसितः) संकल्प वाला (श्रद्धावाला है)।

अनुवाद

यदि अत्यन्त दुराचारी (पापी) श्रद्धा रखता है मुझमें और अनन्य ( देवताओं) की भक्ति नहीं करता है तो नि:संदेह उसे पवित्र व्यक्ति (मुनि) मानना चाहिए। निःसंदेह वह सही परिपूर्ण संकल्प वाला (श्रद्धावाला) है।