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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 12 ,श्लोक नं. 15
श्लोक

श्रीभगवानुवाच
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः । हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः ॥

यस्मात् न उद्विजते लोकःलोकात् नउद्विजते च यः ।
हर्ष अमर्ष भय उद्वेगै: मुक्तः यः सः च मे प्रियः ।। १५ ।।

शब्दार्थ

(यस्मात) जिससे (लोका) लोगों को (न) न ही (उद्विजते) कष्ट होती है (च) और (न) न ही (लोकात्) लोग (यः) जिसे (उद्विजते) कष्ट देते हैं (च) और (यः) जो (हर्ष) आनंद (हर्ष ) (अमर्ष) दुःख (भय) भय (और) (उद्वेगै) चिन्ता से (मुक्तः) मुक्त है (सः) वह (मे) मेरा (प्रियः) प्रिय है।

अनुवाद

जिससे लोगों को न ही कष्ट होता है, और न ही लोग जिसे कष्ट देते हैं और जो आनंद, दुःख, भय (और) चिन्ता से मुक्त है, वह मेरा प्रिय है।