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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 12 ,श्लोक नं. 17
श्लोक

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति । शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ॥

यः न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न कांक्षति ।
शुभ अशुभ परित्यागी भक्ति-मान् यः सः मे प्रियः
।। १७ ।।

शब्दार्थ

(यः) वह (जो) (न) न (हृष्यति) बहुत खुशी मनाता है। (न) (और) न (द्वेष्टि) बहुत शोक मनाता है। (न) न (शोचति) विलाप ( मातंम) करता है (न) (और) न (कांक्षति) और अधिक की इच्छा रखता है (यः) वह (जिसने) (शुभ-अशुभ) शुभ-अशुभ (की आस्था को) (परित्यागी) त्याग दिया है (भक्ति-मान्) जो मेरी भक्ति में गर्व अनुभव करता है। (सः) वह (मे) मुझे (प्रियः) प्रिय है।

अनुवाद

वह (जो) न बहुत खुशी मनाता है। (और) न बहुत शोक मनाता है। न विलाप करता है, (और) न और अधिक की इच्छा रखता है। वह (जिसने) शुभ-अशुभ (की आस्था को ) त्याग दिया है। जो मेरी भक्ति में गर्व अनुभव करता है। वह मुझे प्रिय है।