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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 12 ,श्लोक नं. 18
श्लोक

समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः । शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ।।

समः शत्रौ च मित्रे च तथा मान अपमानयोः ।
शीत उष्ण सुखा दु:खोषु समःसडविवर्जितः ।। १८ ।।

शब्दार्थ

(मित्रे) (वह जो) मित्र (च) और (क्षत्री) शत्रु से (समः) एक समान (उचित न्यायपूर्वक) बर्ताव करने वाला है। (तथा) और (जो) (मान) सम्मान (अपमानयोः) अपमान (शीत) सर्दी (गरीबी) (उष्ण) गर्मी (अमीरी) (सुख) सुख (च) और ( दुःखेषु) दुःख में (समः) एक समान रहता है। (सडग) और जो संगम को (विवर्जितः) छोड़ने वाला है ( वह मुझे प्रिय है ) । (नोट: संगम का साधारण अर्थ शिर्क है।)

अनुवाद

(वह जो) मित्र और शत्रु से एक समान (उचित न्यायपूर्वक) बर्ताव करनेवाला है। और (जो) सम्मान, अपमान, सर्दी (गरीबी), गर्मी (अमीरी), सुख और दुःख में एक समान रहता है। और जो संगम (शिर्क) को छोड़ने वाला है, (वह मुझे प्रिय है) ।