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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 22
श्लोक

श्रीभगवानुवाच
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव ।
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ॥22॥

श्री भगवान उवाच, प्रकाशम् च प्रवृत्तिम् च मोहम् एव च पाण्डव |
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ।।२२।।

शब्दार्थ

(श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने कहा, (अतीत हुआ मनुष्य) (न द्वेष्टि) न द्वेष (नफरत) करता है (प्रकाशम्) है प्रसिद्धि (Fame) से (च) और (प्रवृत्तिम) समृद्धि (तरक्की) से (च) और (मोहम्) भ्रम से (धनवान मित्रों और रिश्तेदारों से) (सम्प्रवृत्तानि) जब वह सब अधिक होने लगे (न) (और) न (काङ्क्षति) इच्छा करता है (निवृत्तानि) जब (प्रसिद्धी, समृद्धि, मित्र और रिश्तेदार) कम होने लगे।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, (अतीत हुआ व्यक्ति) न द्वेष (नफरत) करता है प्रसिद्धि से, और समृद्धी (तरक्की) से, और भ्रम से (धनवान मित्रों और रिश्तेदारों से) जब वह सब अधिक होने लगे। (और) न इच्छा करता है जब ( प्रसिद्धि, समृद्धि, मित्र और रिश्तेदार) कम होने लगे।

नोट

'मोहम' का अर्थ है भ्रम होना। किन्तु हमने इसका अर्थ अमीर मित्र और रिश्तेदार लिया है। क्योंकि इन दोनों से मनुष्य सदैव भ्रम में रहता है और अपने आपको सुरक्षित और भाग्यशाली समझता है। किन्तु मरते ही उसे एहसास होता है कि वह तो बिल्कुल अकेला है और आगे की सारी यात्रा उसे अकेले करना है।