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विषय नं. 4 - ईश्वर का परिचय



अध्याय नं. 15 ,श्लोक नं. 17
श्लोक

उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ||17||

उत्तमः पुरुषः तु अन्य परम आत्मा इति उदाहृतः ।
यः लोक त्रयम् आविश्य विभिर्ति अव्ययः ईश्वरः ।। १७ ।।

शब्दार्थ

(तु) किन्तु (उदाहृतः) (ईश्वर) कह रहा है कि (इति) वह (ईश्वर) ईश्वर (खुद) (अन्य) दूसरों से (उत्तम:) महानतम (पुरुष) दिव्य व्यक्तित्व है। (आत्मा) (वह) आत्मा (से भी) (परम) महानतम है (अव्ययः) वह अविनाशी है (लोक त्रयम्) तीनों लोकों पर (आविश्य ) छाया हुआ है (विभिर्ति) और उनकी रक्षा करता है।

अनुवाद

किन्तु (ईश्वर) कह रहा है कि वह ईश्वर (खुद) दूसरों से महानतम दिव्य व्यक्तित्व है। (वह) आत्मा ( से भी) महानतम है, वह अविनाशी है, तीनों लोकों पर छाया हुआ है और उनकी रक्षा करता है।