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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 25
श्लोक

मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः ।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः सा उच्यते ॥25॥

मान अपमानयोः तुल्यः तुल्यः मित्र अरि
पक्षयोः ।
सर्व आरम्भ परित्यागी गुण-अतीतः सः उच्यते ।।२५।।

शब्दार्थ

(उच्यते) ईश्वर ने कहा (गुण-अतीत) वह जो तीनों गुणों को छोड़ देता है। (स) ऐसे व्यक्ति के लिए (मान) मान (अपमानयोः) अपमान (तुल्य:) एक समान होते हैं (मित्र) मित्र (अरि) (और) शत्रु (पक्षयोः) या कोई और पक्ष से (तुल्य) वह एक समान व्यवहार करता है (सर्व) वह (सारे) (आरम्भ) व्यर्थ काम (भी) (परित्यागी) छोड़ देता है।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा वह जो तीनों गुणों को छोड़ देता है। ऐसे व्यक्ति के लिए मान अपमान एक समान होते हैं। मित्र (और) शत्रु या कोई और पक्ष से वह एक समान व्यवहार करता है। वह (सारे) व्यर्थ काम (भी) छोड़ देता है।

नोट

आरम्भ का अर्थ समझने के लिए श्लोक नं. १२.१६ के नोट को पढ़िए ।