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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 26
श्लोक

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्येतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥26॥

माम् च यः अव्यभिचारेण भक्ति-योगेन सेवते ।
सः गुणान् समतीत्य एतान् ब्रह्मभूयाय कल्पते ।।२६।।

शब्दार्थ

(य) वह (अतीत व्यक्ति) (भक्ति) (ऐसी) प्रार्थना करता है (जो उसे ) ( च मम ) मुझसे (योगेन्) जोड़ दे (अव्यभिचारेण) और संगम (शिर्क) नहीं करता (सेवेत) वह मेरा दास बन जाता है (स:) वह (व्यक्ति) (समतीत्य) ऊपर उठ जाता है (एतान) इन (गुणान्) (तीनों) गुणों से (ब्रह्म) (वह) ईश्वर से (भूयाय) बहुत (कल्पते) निकट हो जाता है।

अनुवाद

वह (अतीत व्यक्ति) (ऐसी) प्रार्थना करता है (जो उसे) मुझसे जोड़ दे। और संगम (शिर्क) नहीं करता। वह मेरा दास बन जाता है। वह (व्यक्ति) ऊपर उठ जाता है इन (तीनों) गुणों से (और वह) ईश्वर से बहुत निकट हो जाता है।