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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 1
श्लोक

श्रीभगवानुवाच अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।1।।

श्री भगवान उवाच, अभयम् सत्व-संशुद्धिः ज्ञान योग व्यवस्थितिः ।
दानम् दमः च यज्ञः च स्वाध्यायः तपः आर्जवम् ||

शब्दार्थ

(श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने कहा! (अभयम्) निडर (निर्भय) होना (सत्व-संशुद्धि:) शरीर और आत्मा की शुद्धि, पवित्र, स्वच्छ होना। (ज्ञान योग) ज्ञान के प्रकाश में ईश्वर से निकट होना (ईश्वर के सम्पर्क में रहना) (व्यवस्थितिः) ईश्वर की प्रार्थना में दृढता से स्थित रहना (दानम्) दान देना (दम) इच्छाओं को वश में रखना (च) और (यज्ञः) अनिवार्य कर्तव्यों को पूरा करना (च) और (स्वाध्याय) वेदों का अध्ययन करना (तपः) तप करना (आर्जवम्) सरल जीवनशैली अपनाना।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, (कि उसके आदेश का पालन करने से जो अच्छे व्यवहार मनुष्य होते हैं वह यह है।) में उत्पन्न निडर होना, शरीर और आत्मा की शुद्धि, पवित्र, स्वच्छ होना। ज्ञान के प्रकाश में ईश्वर से निकट होना (ईश्वर के सम्पर्क में रहना) ईश्वर की प्रार्थना में दृढता से स्थित रहना । दान देना । इच्छाओं को वश में रखना और अनिवार्य कर्तव्यों को पूरा करना और वेदों का अध्ययन करना । तप करना, सरल जीवनशैली अपनाना।

नोट

यज्ञ का अर्थ समझने के लिए नोट नं. N १३ पढ़िए।