Home Chapters About



विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 2
श्लोक

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम् ।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं हीरचापलम्।।2।।

अहिंसा सत्यम् अक्रोधः त्यागः शान्तिः अपैशुनम । दया भूतेषु अलोलुप्तवम् मार्दवम् हीः अचापलम्||२||

शब्दार्थ

(अहिंसा) हिंसा को त्याग देना (सत्यम्) सदैव सत्य बोलना (अक्रोध:) क्रोध न करना (त्यागः) शानदार जीवन त्याग देना (शान्ति:) अपने जीवन में और समाज में शान्ति के लिए प्रयास करना (अपैशुनम्) चुगली न करना (किसी की निंदा न करना) (दया भूतेषु) सारे प्राणियों पर दया करना (अलोलुप्तवम्) लोभ, लालच से दूर रहना, (मार्दवम्) नरम स्वभाव का बनना बुरे काम करने में शरम महसूस करना ( शील ग्रहण करना) (अचापलम्) वचन प्रतिज्ञा को पूरा करना ।

अनुवाद

हिंसा को त्याग देना, सदैव सत्य बोलना, क्रोध न करना, शानदार जीवन त्याग देना, अपने जीवन में और समाज में शान्ति के लिए प्रयास करना, चुगली न करना, (किसी की निंदा न करना) सारे प्राणियों पर दया करना, लोभ, लालच से दूर रहना, नरम स्वभाव का बनना, बुरे काम करने में शर्म महसूस करना (शील ग्रहण करना), वचन (प्रतिज्ञा) को पूरा करना।

नोट

लुकमान हकीम ने अपने पुत्र को जो उपदेश दिए थे उनका वर्णन पवित्र कुरआन में इस में प्रकार है। “बेटा, नमाज कायम कर, (पढ़ते रहना) सत्कर्म का आदेश दे, बुराई से रोक, और जो मुसीबत भी पड़े उस पर सब्र कर। ये वे बातें है जिनकी बड़ी ताकीद की गई है। और लोगों से मुख फेरकर बात न कर, न धरती पर अकड़कर चल। ईश्वर किसी अहंकारी और डींग मारने वाले को पसंद नहीं करता। अपनी चाल में सन्तुलन बनाए रख, और अपनी आवाज़ तनिक धीमी रख, सब आवाजों में ज्यादा बुरी आवाज गधों की आवाज होती है। (सूरह लुकमान ३१, आयत-१७-१८-१९)