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विषय नं. 46 - सज्जन/भले व्यक्ती की गुण



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 53
श्लोक

अहङकार बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् । विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते ||53||

अहङ्कारम् बलम् दर्पम् कामम् क्रोधम् परिग्रहम। विमुच्य निर्ममः शान्तः ब्रह्मभूयाय कल्पते ।। ५३ ।।

शब्दार्थ

जो मनुष्य (अहक्डारम्) अहंकार (बलम्) हिंसा (दर्पम्) घमंड (कामम्) अपनी इच्छाओं को पूरी करना (क्रोधम्) क्रोध (परिग्रहम्) स्वार्थपरता, खुदगर्जी, (विमुच्य) छोड़ देता है (निर्मम:) (धन-सम्पत्ती के) प्रेम को छोड़ देता है (शान्ता) और शांति प्रेमी है (ब्रह्म) (ऐसा मनुष्य) ईश्वर के (भूयाय) विवेक को ( पहचानने के / realization) (कल्पतै) योग्य हैं।

अनुवाद

जो मनुष्य अहंकार, हिंसा, घमंड, अपनी इच्छाओं को पूरी करना, क्रोध स्वार्थपरता, छोड़ देता है। धन-सम्पत्ती के प्रेम को छोड़ देता है, और शांति प्रेमी है, (ऐसा मनुष्य) ईश्वर के विवेक को पहचानने के / realization) योग्य है।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा की, और यह कि यतीम अनाथ के माल के करीब न जाओ मगर ऐसे तरीक़े से जो सबसे अच्छा हो । यहाँ तक कि वे अपनी जवानी की उम्र को पहुंच जाएँ और नाप-तौल में पूरा इन्साफ करो। हम हर व्यक्ती पर ज़िम्मेदारी का उतना ही बोझ रखते हैं जितने की उसमें सामर्थ्य है। और जब बात कहो इन्साफ की कहो चाहे मामला अपने नातेदार ही का क्यों न हो। और ईश्वर की (प्रतिज्ञा को (अर्थात ईश्वर से किये गये वचनों/ वादों को पूरा करो। इन बातों का आदेश ईश्वर ने तुम्हें दिया है शायद कि तुम नसीहत कबूल करो। साथ ही उसका आदेश यह है कि यही मेरा सीधा मार्ग है अतः तुम इसी पर चलो और दूसरे मार्गों पर न चलो कि वे उसके मार्ग से हटाकर तुम्हें बिखेर देंगे। यह है वह आदेश जो तुम्हारे ईश्वर ने तुम्हें दिया है, शायद कि तुम पथ भ्रष्टता से बचो। फिर हमने मूसा को किताब प्रदान की थी जो भलाई की नीति अपनाने वाले इन्सान के लिए नेअमत की पूर्णता और हर ज़रूरी चीज़ का विवरण और पूरे तौर पर सत्यमार्ग की सूचना और दयालुता थी। (और इसराईल की सन्तान को इसलिए दी गई थी कि) शायद लोग अपने ईश्वर से मिलने पर ईमान लाएँ। (पवित्र कुरआन १५२-१५४)