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विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 27
श्लोक

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः । अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥27॥

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः । अहङ्कार-विमूढ आत्मा कर्ता अहम् इति मन्यते ।।२७।।

शब्दार्थ

(सर्वशः) सारे कर्म (गुण ) ( ईश्वर के बनाए हुए सत्व, रजो और तमो गुणों से और) (प्रकृते ) ईश्वर के बनाए हुए भाग्य के कारण (क्रियमाणानि) किये जाते हैं। (अहङ्ककार) (किन्तु) अहन्कारी (और) (विमूढ) मूर्ख लोग ( मन्यते) ऐसा मानते हैं कि (इति) यह सब (कर्म) (अहम) मैं (स्वय:) (कर्ता) करता हूँ।

अनुवाद

सारे कर्म (ईश्वर के बनाए हुए सत्व, रजो और तमो गुणों से और) ईश्वर के बनाए हुए भाग्य के कारण किये जाते हैं। (किन्तु) अहंकारी (और) मूर्ख लोग ऐसा मानते हैं कि यह सब (कर्म) मैं करता हूँ।