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विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 4
श्लोक

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च ।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्॥4॥

दम्भः दर्पः अभिमानः च क्रोधः पारुष्यम् एव च । अज्ञानम् च अभिजातस्य पार्थ सम्पदम् आसुरीम् ।।४।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन, (एव) नि:संदेह (सम्पदम्) यह गुण (आसुरीम्) आसुर (शैतान के प्रभाव से) (अभिजातस्य) उत्पन्न होते हैं। (दम्भः) धोखा देना (छल करना) (दर्पः) अहंकार का होना (अभिमान) घमंड का होना (क्रोध:) क्रोध करना (च) और (पारुष्यम्) और कठोरता रखना (अज्ञानम्) ज्ञान और विवेक का न होना।

अनुवाद

(ईश्वर ने कहा की,) हे अर्जुन! नि:संदेह यह गुण आसुर (शैतान के प्रभाव से) उत्पन्न होते हैं। धोखा देना (छल करना), अंहकार का होना, घंमड का होना, क्रोध करना, और कठोरता रखना, और ज्ञान और विवेक का न होना।

नोट

आसुर या शैतान को समझने के लिए नोट नं. N 18 पढ़िए।