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विषय नं. 4 - ईश्वर का परिचय



अध्याय नं. 15 ,श्लोक नं. 18
श्लोक

यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः ।
अतोऽस्मि लोके वेदे प्रथितः पुरुषोत्तमः।।18।।

यस्मात् क्षरम् अतीतः अहम् अक्षरात् अपि च उत्तमः ।
अतः अस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुष उत्तमः।। १८ ।।

शब्दार्थ

(यस्मात्) कारण कि (अहम) मैं (क्षरम्) नाशवान (शरीर से) (अतीत:) परे हूँ (च) और (अक्षरात्) अविनाशी (आत्मा से) (अपि) भी (उत्तम:) महानतम् हूँ (अतः) इसलिए (लोके) इस संसार में (च) और (वेद) वेदों में (उत्तम पुरुष) महानतम दिव्य व्यक्तित्व पुरुषोत्तम (प्रथितः) के (नाम से) प्रसिद्ध हूँ।

अनुवाद

कारण कि मैं नाशवान (शरीर से) परे हूँ, और अविनाशी (आत्मा से) भी महानतम् हूँ इसलिए इस संसार में और वेदों में महानतम दिव्य व्यक्तित्व पुरुषोत्तम के (नाम से) प्रसिद्ध हूँ।