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विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 6
श्लोक

द्वौ भूतसर्गौ लोकऽस्मिन्दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ में श्रृणु॥6॥

द्वी भूत-सर्गो लोके अस्मिन् दैवः आसुरः एव च ।
दैवः विस्तरशः प्रोक्तः आसुरम् पार्थ मे शृणु।। ६ ।।

शब्दार्थ

(एरा) नि:संदेह (अस्मिन) इस (लोके) पृथ्वी लोक में (भूत) मनुष्य के अंदर (द्वौ) दो प्रकार के (सर्गो) गुण होते हैं (दैव:) दिव्य गुण (च) और (आसूर:) आसुरी (शैतानी) गुण (दैव:) दिव्य गुणों को (पार्थ) हे अर्जुन (विस्तरश:) (तुम्हें) विस्तार से (प्रोक्तः) बता दिया गया (आसुरम्) (अब) आसुरी (शैतानी) गुणों के बारे में (मे) मुझसे (शृणु) सुनो।

अनुवाद

नि:संदेह, इस पृथ्वी लोक में मनुष्य के अंदर दो प्रकार के गुण होते हैं। दिव्य गुण और आसुरी (शैतानी) गुण | दिव्य गुणों को हे अर्जुन (तुम्हें) विस्तार से बता दिया गया। (अब) आसुरी (शैतानी) गुणों के बारे में मुझसे सुनो।