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विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 7
श्लोक

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ॥ 7 ॥

प्रवृत्तिम् च निवृत्तिम् च जनाः न विदुः आसुराः ।
न शौचम् न अपि च आचारः न सत्यम् तेषु विद्यते ॥ ७॥

शब्दार्थ

(आसुरा:) आसुरी गुणों वाले लोग (न) (यह ) नहीं (जना:) जानते कि (प्रवृत्तिम्) उचित व्यवहार (क्या है) (च) और (निवृत्तिम्) अनुचित व्यवहार (क्या है) (च) और (शौचम्) मन और शरीर की स्वच्छता को भी (न) नहीं (विदुः) जानते (च) और (आचार) (उनके अच्छे) चरित्र (अपि) भी (न) नहीं (होते) (च) और (न) न (तेषु) उनमें (सत्यम्) सच्चाई (विद्यते) होती है।

अनुवाद

आसुरी गुणों वाले लोग (यह) नहीं जानते कि उचित व्यवहार (क्या है) और अनुचित व्यवहार (क्या है)? और मन और शरीर की स्वच्छता को भी नहीं जानते। और उनके अच्छ चरित्र भी नहीं होते और न उनमें सच्चाई होती है।