Home Chapters About



विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 8
श्लोक

असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्॥8॥

असत्यम् अप्रतिष्ठम् ते जगत् आहुः अनीश्वरम् ।
अपरस्पर सम्भूतम् किम अन्यत् काम-हैतुकम् ||८||

शब्दार्थ

(ते) वह (आहुः) कहते हैं (जगत्) इस जगत (का) (सम्भूतम्) निर्माण (अपरस्पर) बिना किसी उद्देश के हुआ है। (असत्यम्) यह असत्य है (इसकी कोई हकीकत नहीं) (अप्रतिष्ठम्) न इसकी कोई बुनियाद है (अनीश्वरम्) (और) न ईश्वर का अस्तित्व है। (हैतुकम्) और जीवन का उद्देश (काम) यौन संतुष्ठि (Sexual gratification) (अन्यत्) के अतिरिक्त (किम) और क्या है?

अनुवाद

वह कहते हैं, इस जगत (का) निर्माण बिना किसी उद्देश्य के हुआ है। यह असत्य है (इसकी कोई हकीकत नहीं ) । न इसकी कोई बुनियाद है। (और) न ईश्वर का अस्तित्व है। और जीवन का उद्देश्य यौन संतुष्टि (Sexual gratification) के अतिरिक्त और क्या है ?