Home Chapters About



विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 10
श्लोक

काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः। मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः॥10॥

कामम् आश्रित्य दुष्पूरम् दम्भ मान मद अन्विताः।
मोहात् गृहीत्वा असत् ग्राहान् प्रवर्तन्ते अशुचि व्रताः।। १० ।।

शब्दार्थ

(दुष्पूरम्) कभी पूरी न होने वाली (कामम्) इच्छाओं (आश्रित्य) के सहारे (दम्भ) छल (और) (मान) घमंड (मद-अन्विताः) में डूबे हुए (अशुचि) अशुद्ध (नापाक) (व्रता) संकल्प को (गृहीत्वा) अपनाते हुए (असत् ग्राहान्) अस्थायी और सांसारिक मामलों में यह (प्रवर्तन्ते) उन्नति करते हैं।

अनुवाद

कभी पूरी न होने वाली इच्छाओं के सहारे, छल और घमंड में डूबे हुए, अशुद्ध (नापाक) संकल्प को अपनाते हुए, अस्थायी और सांसारिक मामलों में यह उन्नति करते हैं।