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विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 14
श्लोक

असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥ 14॥

असौ मया हतः शत्रुः हनिष्ये च अपरान् अपि ।
ईश्वरः अहम् भोगी सिद्ध अहम् बलवान् सुखी ।।१४।।

शब्दार्थ

(असौ ) वह (शत्रु) शत्रु (मया) मेरे द्वारा ही (हतः) मारा गया है। (च) और (अपरान्) दूसरों का (अपि) भी (हनिष्ये) मैं ही वध करूंगा (ईश्वर अहम्) मैं सबसे बड़ा हूँ (अहम् - भोगी) सबसे अधिक मौज-मस्ती करने वाला हूँ (सिद्ध) मैं हर मैं प्रकार से परिपूर्ण हूँ (आम बलवान) मैं शक्तिशाली हूँ (सुखी) (और) सुखी हूँ।

अनुवाद

(असुरी गुणों के लोग सोचते हैं कि:) वह शत्रु मेरे द्वारा ही मारा गया है और दूसरों को भी मैं ही मारूंगा। मैं सबसे बड़ा हूँ। सबसे अधिक मौज-मस्ती करने वाला हूँ। मैं हर प्रकार से परिपूर्ण हूँ। मैं शक्तिशाली हूँ (और) सुखी हूँ।