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विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 18
श्लोक

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः॥18॥

अहङ्ककारम् बलम् दर्पम् कामम् क्रोधम् च संक्षिताः।
माम् आत्म पर देहेषु प्रद्विषन्तः अभ्यसूयकाः ।। १८ ॥

शब्दार्थ

(अहङ्कारम्) घमंड (बलम्) शक्ति (दर्पम्) गर्व (कामम्) काम भावना (और) (क्रोधम) क्रोध (संक्षिता:) में डुबे हुए (यह लोग) (माम) में (जो) (आत्मा) आत्मा (और) (देहेषु) शरीर से (पर) परे हूँ (अभ्यसूयका:) (मुझसे) शत्रुता रखता है (प्रद्विषन्त) (और) आलोचना करता है।

अनुवाद

(ईश्वर ने कहा की) घमंड, शक्ति, गर्व, काम भावना, और क्रोध में डुबे हुए यह लोग, मैं जो आत्मा और शरीर से परे हूँ मुझसे शत्रुता रखता है. और आलोचना करता है।