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विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 19
श्लोक

तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेषु नराधमान् | क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ।।19।।

तान् अहम् द्विषतः क्रुरान् संसारेषु नर-अधनाम् ।
क्षिपामि अजस्त्रम् अशुभान् आसुरीषु एव योनिषु ।।१९।।

शब्दार्थ

(अहम्) मैं (इन) (द्विषत) घिनौने (क्रुरान्) निर्दयी (नर-अधनाम्) और मनुष्यों में सबसे नीच लोगों को (अजस्त्रम्) सदा के लिए (अशुभान) गंदे (संसारेषु) संसार (नर्क में) (आसुरीषु योनिषु) (जहाँ) असुरों के वंश रखे जाते हैं (क्षिपामि) फेंक देता हूँ। (मूढा) यह मूर्ख लोग (आसूरीम् योनिम्) असुरों के वंश में (जन्मनि जन्मनि) हर मृत्यु के बाद के जीवन (आपन्ना) पाते हैं (और) (अधमाम् गतिम्)

अनुवाद

मैं (इन) घिनौने, निर्दयी, और मनुष्यों में सबसे नीच लोगों को सदा के लिए गंदे संसार (नर्क में) (जहाँ) असुरों के वंश रखे जाते हैं उसमें फेंक देता

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, “ये दो फरीक़ (समुदाय) हैं जिनके बीच अपने ईश्वर के विषय में झगड़ा है। इनमें से वे लोग जिन्होंने इन्कार किया उनके लिए आग के वस्त्र काटे जा चुके हैं। उनके सिरों पर खौलता हुआ पानी डाला जाएगा जिससे उनकी खालें ही नहीं पेट के भीतर के भाग तक गल जाएँगे, और उनकी खबर लेने के लिए लोहे के गुर्ज (गदाएँ) होंगे। जब कभी वे घबराकर जहन्नम (नरक) से निकलने की कोशिश करेंगे तो फिर उसी में ढकेल दिए जाएंगे कि चखो अब जलने की सजा का मज़ा (पवित्र) कुरआन २२:१९-२२)