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विषय नं. 14 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 17 ,श्लोक नं. 1
श्लोक

अर्जुन उवाच ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः ॥1॥

अर्जुन उवाच,ये शास्त्र - विधिम् उत्सृज्य यजन्ते श्रद्धया अन्विताः । तेषाम् निष्ठा तु का कृष्ण सत्वम् आहो रजः तमः ।। १ ।।

शब्दार्थ

(अर्जुन उवाच) अर्जुन ने कहा (ये) वह जो (शास्त्र - विधिम्) धार्मिक शास्त्रों के नियमों को (उत्सृज्य) नहीं मानते (तु) किन्तु (यजन्ते) ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। (श्रद्धया अन्विता:) पूरी श्रद्धा के साथ (कृष्ण) हे श्री कृष्ण (तेषाम् ) उनके (निष्ठा) श्रद्धा की (का) क्या हकीकत है ? (सत्वम्) (क्या वह) सत्व गुण (वाले हैं या ) (रज:) रजो गुण (वाले हैं) (आहो) या (तमः) तमो गुण (वाले हैं)?

अनुवाद

अर्जुन ने कहा, वह जो धार्मिक शास्त्रों के नियमों को नहीं मानते, किन्तु ईश्वर की प्रार्थना करते हैं पूरी श्रद्धा के साथ | हे श्री कृष्ण! उनके श्रद्धा की क्या हकीकत है ? क्या वह सत्व गुण वाले हैं या रजो गुण वाले हैं, या तमो गुण वाले हैं?

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, और (एक ईश्वर को न मानने वालों) में से अधिकतर लोग तो बस कल्पना (अटकल) पर चलते है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि कल्पना सत्य के मुकाबले में कुछ भी उपयोगी नहीं। जो कुछ ये कर रहे हैं ईश्वर उसे भली-भांती जानता है। (सूरे युनूस १०, आयत-३६)