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विषय नं. 47 - दुर्जानो के गुण



अध्याय नं. 17 ,श्लोक नं. 4
श्लोक

यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः ।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः ॥4॥

यजन्ते सात्विकाः देवान् यक्ष-रक्षांसि राजसाः।
प्रेतान् भूत-गणान् च अन्ये यतन्ते तामसाः जनाः ।। ४ ।।

शब्दार्थ

सात्विका:) सत्व गुण वाले (देवान्) ईश्वर की प्रार्थना करते हैं (राजस:) रजो गुण वाले ( यक्ष रक्षांसि) यक्ष और राक्षस (शैतान) की प्रार्थना करते हैं। (तामसा: जना:) तमो गुण के लोग (प्रेतान्) मरे हुए लोगों की आत्माओं की और (भूत-गणान्) भूतों की (च) और (अन्य) अन्य (शक्तियों की) (यतन्ते ) प्रार्थना करते हैं । (अर्थात जन्म से सबमें एक ईश्वर की श्रद्धा की भावना ही होती है, किन्तु समाज और परिवार की संस्कृति और शिक्षा के कारण वह जीवन में दूसरों की प्रार्थना करने लगता है।)

अनुवाद

( मनुष्य तीन प्रकार की श्रद्धा के साथ जीवन व्यतीत करता है, और उसी श्रद्धा के साथ मृत्यु पाता है) सत्व गुण वाले ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। रजो गुण वाले यक्ष और राक्षसों की प्रार्थना करते हैं। तमो गुण के लोग मरे हुए लोगों की आत्माओं की और भूतों की और अन्य (शक्तियों की) प्रार्थना करते हैं।