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विषय नं. 48 - आत्म-संयम



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 3
श्लोक

आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते ।
योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते ॥3॥

आरुरुक्षोः मुनेः योगम् कर्म कारणम् उच्यते । योग आरुढस्य तस्य एव शमः कारणम् उच्यते ।।३।।

शब्दार्थ

(उच्यते) ईश्वर ने कहा कि (योगम् कर्म) वह कर्म जिससे व्यक्ति ईश्वर से जुड़ जाता है। (कारणम्) (उन कर्मों के कारण (मुनेः) वह पवित्र व्यक्ति (आरुरुक्षोः) भक्ति के पहले चरण में होता है। (उच्यते) ईश्वर ने कहा कि ( शमः) धैर्य, वासनाओं पर रोक, शांत और संतुष्ट रहने (कारणम्) के कारण (तस्य) वह पवित्र व्यक्ति (एव) नि:संदेह (योग) भक्ति के (आरुढस्य) उच्चतम चरण में होता है।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा कि, वह कर्म जिससे व्यक्ति ईश्वर से जुड़ जाता है। (उन कर्मों के कारण वह पवित्र व्यक्ति भक्ति के पहले चरण में होता है। ईश्वर ने कहा कि धैर्या, वासनाओं पर रोक, शांत और संतुष्ट रहने के कारण वह पवित्र व्यक्ति, निसंदेह भक्ति के उच्चतम चरण में होता है।