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विषय नं. 48 - आत्म-संयम



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 24
श्लोक

सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः । मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः ॥24॥

सडकल्प प्रभवान् कामान् त्यक्तत्वा सर्वान् अशेषतः। मनसा एव इन्द्रिय-ग्रामम् विनियम्य समन्ततः ।।२४।।

शब्दार्थ

(इन्द्रिय-ग्रामम्) शरीर के आनंद का अनुभव करने वाले अंगो पर ( समन्ततः) सभी ओर से (विनियम्य ) नियंत्रण रखो (एवं) और ( प्रभवान्) मन में उत्पन्न होने वाली (सर्वान्) सभी (कामान्) कामनाओं को (अशेषतः) पूरी तरह से (मनसाः) मन से (त्यक्त्वा) छोड़ देने का (सड़कल्प) संकल्प करो।

अनुवाद

शरीर के आनंद का अनुभव करने वाले अंगो पर सभी ओर से नियंत्रण रखो और मन में उत्पन्न होने वाली सभी कामनाओं को पूरी तरह से मन से छोड़ देने का संकल्प करो।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, "(हे पैगंबर) ईश्वर में श्रद्धा रखने वालों से कहो, वे अपनी निगाहें (दृष्टी) को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों (गुप्त अंगो) की रक्षा करें (अश्लिलता से)। यह उनके लिए अधिक शुद्धता की बात है। निःसंदेह ईश्वर उसकी खबर रखता है, जो कुछ वे करते है।” (सूरे अन-नूर (२४) आयत (३०))