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विषय नं. 49 - स्वार्थरहित कर्म का वर्णन



अध्याय नं. 12 ,श्लोक नं. 12
श्लोक

श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्धयानं विशिष्यते । ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ॥

श्रेयः हि ज्ञानम् अभ्यासात् ज्ञानात् ध्यानम् विशिष्यते ।
ध्यानात् कर्मफल- त्यागः त्यागात् शान्तिः अनन्तरम् ।। १२ ।।

शब्दार्थ

(हि) नि:संदेह (अभ्यासात्) (वेदों को) पढ़कर ( ज्ञानम् ) ज्ञान प्राप्त करना (श्रेयः) श्रेष्ठ है। (ज्ञानात्) ज्ञान प्राप्त करने से (विशिष्यते) अधिक श्रेष्ठ है (ध्यानम् ) उस ज्ञान को समझना ( उसमें ध्यान लगाना) (ध्यानात्) किन्तु ज्ञान को केवल समझने से श्रेष्ठ है (कर्म फल-त्याग ) उसके अनुसार निःस्वार्थ कर्म करना (अनन्तरम्) क्योंकि अन्त में (शान्तिः) अनंत शान्ति केवल (त्यागात्) कर्म फल त्यागने से या निःस्वार्थ कर्म करने से ही प्राप्त होता है।

अनुवाद

नि:संदेह ( वेदों को) पढ़कर ज्ञान प्राप्त करना श्रेष्ठ है। ज्ञान प्राप्त करने से अधिक श्रेष्ठ है उस ज्ञान को समझना (उसमें ध्यान लगाना) । किन्तु ज्ञान को केवल समझने से श्रेष्ठ है उसके अनुसार निःस्वार्थ कर्म करना। क्योंकि अन्त में अनंत शान्ति केवल कर्म फल त्यागने से या नि:स्वार्थ कर्म करने से ही प्राप्त होता है।