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विषय नं. 49 - स्वार्थरहित कर्म का वर्णन



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 12
श्लोक

अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम् । भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु सन्न्यासिनां क्वचित् ।। 12॥

अनिष्टम् इष्टम् मिश्रम् च त्रि-विधम् कर्मणः फलम। भवति अत्यागिनाम् प्रेत्य न तु संन्यासिनाम् क्वचित् ।। १२ ।।

शब्दार्थ

(अत्यागिनाम्) जो लोग निःस्वार्थ काम नहीं करते (उनके लिए) (प्रेत्य) मृत्यु के बाद (त्रि विधम्) तीन प्रकार के फल (भवति) हैं। (अनिष्टम्) (वह फल जो) नरक की ओर ले जाए (इष्टम) (वह फल जो) स्वर्ग की तरफ ले जाए (च) और (मिश्रम्) मिला-जुला फल (तु) किन्तु (संन्यासिनाम्) (वह लोग जो) नि:स्वार्थ कर्म करते हैं (उनके लिए) (क्वचित) कभी भी (न) (तीन प्रकार के फल) नहीं है।

अनुवाद

जो लोग निःस्वार्थ कर्म नहीं करते, उनके लिए मृत्यु के बाद तीन प्रकार के फल हैं। वह फल जो नरक की ओर ले जाए, वह फल जो स्वर्ग की तरफ ले जाए, और मिला-जुला फल । किन्तु वह लोग जो निस्वार्थ कर्म करते हैं उनके लिए कभी भी तीन प्रकार के फल नहीं हैं। (केवल एक प्रकार का फल है और वह है स्वर्ग)