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विषय नं. 52 - समाज सेवा



अध्याय नं. 5 ,श्लोक नं. 25
श्लोक

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः ।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥25॥

लभन्ते ब्रह्म-निर्वाणम् ऋषयः क्षीण-कल्मषाः । छिन्न द्वैधाः यत आत्मानः सर्वभूत हिते रताः ।।२५।।

शब्दार्थ

( ऋषयः) पवित्र और पुण्य लोग ( क्षीण - कल्मषाः) जिनके संपूर्ण पाप नष्ट हो गए हैं। (छिन्न द्वैधा) जिनके सम्पूर्ण संशय मिट गए हैं। (यत-आस्मान) जिनका शरीर, मन, बुद्धि और इन्द्रिय वश में हैं। (सर्वभूत) जो सम्पूर्ण प्राणियों के (हिते) भलाई के काम में (रताः) लगे रहते हैं। (ब्रह्म-निर्वाणम् ) वह ईश्वर के स्वर्ग को (लभन्ते ) प्राप्त कर लेता है।

अनुवाद

पवित्र और पुण्य लोग जिनके संपूर्ण पाप नष्ट हो गए हैं। जिनके सम्पूर्ण संशय मिट गए है जिनका शरीर, मन, बुद्धि और इन्द्रिय वश में है। जो सम्पूर्ण प्राणियों के भलाई के काम में लगे रहते हैं। वह ईश्वर के स्वर्ग को प्राप्त कर लेता है।