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विषय नं. 52 - समाज सेवा



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 5
श्लोक

ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक्। ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितैः ॥5॥

ऋषिभिः बहुधा गीतम् छन्दोभिः विविधैः पृथक । ब्रह्म-सूत्र पदैः च एव हेतु-मद्भिः विनिश्चितैः ।।५।।

शब्दार्थ

( हेतु मद्भिः) मानवजाति के कल्याण के लक्ष्य से (ऋषिभिः) ऋषियों ने (बहुधा) बहुत विस्तार से (छन्दोभिः) वेदों की ऋचाओं द्वारा (ईश्वर की प्रशंसा) (विविधै) बहुत प्रकार से (पृथक) विभाग पूर्वक (गीतम्) कहा है। (ब्रह्म-सूत्र) ब्रह्मसूत्र (के) ( पदैः) पदों द्वारा (विनिश्चितैः) यह बात सबसे निश्चित (स्पष्ट) तरीके से कही गई है।

अनुवाद

मानवजाति के कल्याण के लक्ष्य से ऋषियों ने बहुत विस्तार से वेदों की ऋचाओं द्वारा (ईश्वर) की प्रशंसा) बहुत प्रकार से विभाग पूर्वक का है। ब्रह्मसूत्र (के) पदों द्वारा यह बात सबसे निश्चित (स्पष्ट) तरीके से कही गई है।