Home Chapters About



विषय नं. 5 - ईश्वर की प्रशंसा



अध्याय नं. 11 ,श्लोक नं. 40
श्लोक

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व । अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि ||40||

नमः परस्तात अथ पृष्ठतः ते नमः अस्तु ते सर्वतः एव सर्व । अनन्त वीर्य अमित-विक्रमः त्वम् सर्वम् समाप्नोषि ततः असि सर्व ॥ ४० ॥

शब्दार्थ

(ते) (हे ईश्वर मैं) आपको (परस्तात) सामने से (अथ) और (पृष्ठतः) पिछे से (नमः) नमस्कार करता हूँ (ते) आपको (सर्वतः ) हर जगह से ( नमः) नमस्कार (अस्तु) करता हूँ (सर्व) (कारण कि आप) सब कुछ हैं (अनन्त वीर्य) हे अनन्त ( शक्ति वाले ईश्वर) (एवं) नि:संदेह (त्वम्) आप (के) (अमित) महान (विक्रम) शक्ति (से ही) (सर्वम्) (इस संसार को) सब कुछ (समाप्नोषि) प्राप्त हो रहा है (ततः) और उस (अन्य लोक में भी आपकी शक्ति से) (सर्व) सब कुछ (असि) प्राप्त होगा।

अनुवाद

(हे ईश्वर मैं) आपको सामने से और पीछे से नमस्कार करता हूँ। आपको हर जगह से नमस्कार करता हूँ। (कारण कि आप) सब कुछ हैं। हे अनन्त ( शक्ति वाले ईश्वर), नि:संदेह, आप (के) महान शक्ति (से ही) (इस संसार को) सब कुछ प्राप्त हो रहा है और उस (अन्य लोक में भी आपकी शक्ति से) सब कुछ प्राप्त होगा।