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विषय नं. 53 - सामाजिक समानता



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 29
श्लोक

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥29॥

समः अहम् सर्व-भूतेषु न मे द्वेष्यः अस्ति न प्रियः । ये भजन्ति तु माम् भक्त्या मयि ते तेषु च अपि अहम् ।।२९।।

शब्दार्थ

(सर्व भुतेषु ) सर्व प्राणी (अहम् ) मेरे लिए (समः) समान है (न) न (मे) मैं (किसी से) (द्वेष्यः) द्वेष (अस्ति) करता हूँ (न) (और) न (प्रियः) प्रेम करता हूँ (तु) किन्तु (ये) जो (माम ) मेरी (भक्त्या) श्रद्धा के साथ (भजन्ति) प्रार्थना करते हैं। (ते) वह (मयि) मेरे लिए हैं (च) और (अहम्) मैं (तेषु) उनके लिए हूँ।

अनुवाद

सर्व प्राणी मेरे लिए समान हैं। न मैं किसी से द्वेष करता हूँ और न प्रेम करता हूँ। किन्तु जो मेरी श्रद्धा के साथ प्रार्थना करते हैं, वह मेरे लिए हैं और मैं उनके लिए हूँ।