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विषय नं. 53 - सामाजिक समानता



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 31
श्लोक

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति । कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥31॥

क्षिप्रम् भवति धर्म-आत्मा शश्वत-शान्तिम् निगच्छति । कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ।।३१।।

शब्दार्थ

( क्षिप्रम्) बहुत जल्दी (वह) (धर्म आत्मा) पवित्र व्यक्ति (भवति) बन जाएगा (और मृत्यु के बाद) (शश्वत्-शान्तिम् ) निरन्तर शांत रहने वाला स्थान (स्वर्ग) (निगच्छति) प्राप्त करेगा (पालेगा) (कौन्तेय) हे कुन्तीपुत्र (अर्जुन) (प्रतिजानीहि) घोषित कर दो कि (मे) मेरी (भक्तः) प्रार्थना करने वालों का ( प्रणश्यति ) (कभी) पतन (न) नहीं होता।

अनुवाद

बहुत जल्दी वह पवित्र व्यक्ति बन जाएगा। और मृत्यु के बाद निरन्तर शांत रहने वाला स्थान (स्वर्ग) प्राप्त करेगा। हे कुन्तीपुत्र अर्जुन घोषित कर दो कि मेरी प्रार्थना करने वालों का कभी पतन नहीं होता।