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विषय नं. 53 - सामाजिक समानता



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 32
श्लोक

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु पापयोनयः । स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्
॥32॥

माम् हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये अपि स्युः पाप
योनयः ।
स्त्रियः वैश्याः तथा शूद्राः ते अपि यान्ति पराम् गतिम् ||३२||

शब्दार्थ

(पार्थ) हे पार्थ (अर्जुन) (माम) मेरी (भक्ति करके) (व्यपाश्रित्य) मेरी शरण लेने वाले (ये) जो (अपि) भी (स्युः) मनुष्य हैं (पाप) चाहे वह पापियों की (योनयः) पीढ़ी से हो (स्त्रियः) स्त्रिया हों (वैश्याः) खेती या व्यापार करने वाले वैश्य हों। ( तथा ) अथवा (शुद्राः) शुद्रा हो (हि) नि:संदेह (ते) यह (अपि) सभी (परम्) (स्वर्ग की) सबसे श्रेष्ठ (गतिम् ) लक्ष को (यान्ति) पाएंगे।

अनुवाद

हे पार्थ! (अर्जुन), मेरी भक्ति करके मेरी शरण लेने वाले जो भी मनुष्य हैं, चाहे वह पापियों की पीढ़ी से हों, स्त्रियां हों, खेती या व्यापार करने वाले वैश्य हों, अथवा शुद्रा हो । निःसंदेह यह सभी (स्वर्ग की) सबसे श्रेष्ठ लक्ष को पाएंगे।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि जो भी पुण्य के कर्म करेगा पुरुष हो या स्त्री, और वह मोमिन भी हो (ईश्वर में श्रद्धा वाला भी हो) तो हम उसे (इस पृथ्वी पर) पवित्र और सरल जीवनशैली से जीवित रखेंगे। और मृत्यु के बाद (अन्य लोक में) उनके सत्कर्मों का उनको बहुत अच्छा बदला देंगे। (पवित्र कुरआन सूरह अन नहल १६ आयत ९७)