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विषय नं. 53 - सामाजिक समानता



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 33
श्लोक

किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा । अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥33॥

किम् पुनः ब्राह्मणाः पुण्याः भक्ताः राज-ऋषयः तथा । अनित्यम् असुखम् लोकम् इमम् प्राप्य भजस्व माम् ।।३३।।

शब्दार्थ

( पुनः) फिर ( ब्राह्मणाः) ब्राह्मण ( पुण्याः) पवित्र मनुष्य (भक्ताः) प्रार्थना करने वाले (तथा) और (राज-ऋषय) राज करने वाले ऋषियों का (किम् ) क्या कहना ( इमम ) इसलिए (अनित्यम्) अस्थायी (असुखम्) और दुःखों से भरे (लोकम्) इस संसार को (प्राप्य) प्राप्त करके (क्या करोगे) (माम्) (हमेशा की सफलता के लिए) मेरी (भजस्व) प्रार्थना में लग जाओ।

अनुवाद

फिर ब्राह्मण, पवित्र मनुष्य, प्रार्थना करने वाले, और राज करने वाले ऋषियों का कहना। इसलिए अस्थायी और दुःखों से भरे इस संसार को प्राप्त करके क्या करोगे? हमेशा की सफलता के लिए मेरी प्रार्थना में लग जाओ।