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विषय नं. 53 - सामाजिक समानता



अध्याय नं. 12 ,श्लोक नं. 4
श्लोक

सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः । ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः ॥

सन्नियम्य इन्द्रिय-ग्रामम् सर्वत्र सम-बुद्धयः ।
ते प्राप्युवन्ति माम् एव सर्व भूत-हिते रताः ।। ४ ।।

शब्दार्थ

(ते) वह जो ( सन्नियम्य) नियंत्रण करते हैं (सर्वत्र ) हर तरफ से (और हर प्रकार से) ( इन्द्रिय-ग्रामम् ) अपने इन्द्रियों को (सम बुद्धयः) और एक ही जैसा रहते हैं (सुख दुःख में) और (सर्व) सदैव (भूत) प्राणियों की (हिते) हित (कल्याण) (रताः) में व्यस्त रहते हैं ( एवं ) नि:संदेह (वह) (माम्) मुझे ( प्राप्युवन्ति) पा लेते हैं।

अनुवाद

वह जो नियंत्रण करते हैं हर तरफ से (और हर प्रकार से) अपने इन्द्रियों को, और एक ही जैसा रहते हैं (सुख दु:ख में), और सदैव प्राणियों की हित (कल्याण) में व्यस्त रहते हैं, नि:संदेह (वह) मुझे पा लेते हैं।