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विषय नं. 54 - धर्म ज्ञान के प्रचार का महत्व



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 70
श्लोक

अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः । ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः ॥70||

अध्येष्यते च यः इमम् धर्म्यम् संवादम् आवयोः । ज्ञान अज्ञेन तेन अहम् इष्टः स्याम् इति मे मतिः ।। ७० ।।

शब्दार्थ

(यः) जो मनुष्य (धर्म्यम्) इस (ईश्वर के आदेशों व नियमों पर आधारित) धर्म के बारे में किये गए (संवादम्) संवाद में (अध्येष्यते) सोच विचार करेगा (च) और (आवयोः) धीरे-धीरे इसके टुकड़े टुकड़े को समझेगा, (ज्ञान) वह ज्ञान के द्वारा (अज्ञेन) ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करेगा (अहम्) और मैं (तेन) इसकी (इष्ट:) सारी आशाओं को (स्याम्) पूरी करुँगा (इति) इस तरह का (मे) यह मेरा (मति:) निर्णय है।

अनुवाद

जो मनुष्य इस (ईश्वर के आदेशों व नियमों पर आधारित) धर्म के बारे में किये गए संवाद में सोच-विचार करेगा और धीरे-धीरे इसके टुकड़े टुकड़े को समझेगा, वह ज्ञान के द्वारा ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करेगा और मैं इसकी सारी आशाओं को पूरी करुँगा, इस तरह का यह मेरा निर्णय है।