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विषय नं. 55 - वर्णाश्रम धर्म



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 43
श्लोक

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्। दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ॥43||

शौर्यम् तेजः धृतिः दाक्ष्यम् युद्धे च अपि अपलायनम् ।
दानम् ईश्वर भावः च क्षात्रम् कर्म स्वभाव- जम् ।।४३ ।।

शब्दार्थ

(शौर्यम्) शूरवीरता (तेज:) तेज (धृतिः) दृढ संकल्प (दाक्ष्यम्) प्रजा के संचालन में चतुरता (Good administration ability) (च) और (युद्धे अपलायनम्) युद्ध में पीठ न दिखाना (दानम्) दान करना (ईश्वर भाव:) शासन करने का स्वभाव (एव) नि:संदेह (क्षात्रम्) क्षत्रिय के (यह) (स्वभाव-जम्) स्वभाविक (कर्म) कर्म हैं।

अनुवाद

शूरवीरता, तेज, दृढ संकल्प, प्रजा के संचालन में चतुरता (Good administration ability), और युद्ध में पीठ न दिखाना, दान करना, शासन करने का स्वभाव, नि:संदेह क्षत्रिय के (यह) स्वभाविक कर्म हैं।