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विषय नं. 55 - वर्णाश्रम धर्म



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 46
श्लोक

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम् । स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः ॥46||

यतः प्रवृत्तिः भूतानाम् येन सर्वम् इदम् ततम् । स्व-कर्मणा तम् अभ्यर्च्य सिद्धिम् विन्दति मानवः ।।४६।।

शब्दार्थ

(यतः) (वह ईश्वर) जिसने (भूतानाम्) सम्पूर्ण प्राणियों को (प्रवृत्ति) उत्पन्न किया (येन) जिसने (इदम्) इस (सर्वम्) सम्पूर्ण (ब्रह्मांड को) (ततम्) स्थापित किया (तम्) उस (ईश्वर की) (अभ्यर्च्य) प्रार्थना करते हुए (स्व-कर्मणा ) अपने स्वाभाविक गुणों के अनुसार काम करने से ही (मानव:) मनुष्य (सिद्धिम् ) सफलता (विन्दति) प्राप्त करता है।

अनुवाद

वह ईश्वर जिसने सम्पूर्ण प्राणियों को उत्पन्न किया, जिसने इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड को स्थापित किया, उस ईश्वर की प्रार्थना करते हुए अपने स्वाभाविक गुणों के अनुसार काम करने से ही के मनुष्य सफलता प्राप्त करता है।

नोट

पैगंबर मुहम्मद (स.) ने कहा, “ईश्वर ने कुछ मनुष्यों को लोगों की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए पैदा किया है। लोग इनके पास अपनी आवश्यकताऐं लेकर जाते हैं और वे उसे पूरी करते हैं। लोगों की आवश्यकताएं को पूरा करने वाले यह लोग ईश्वर के प्रकोप से सुरक्षित रहेंगे।” (तबरानी कबीर १३३३४ अन अब्दुल्ला-बिन-उमर)