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विषय नं. 55 - वर्णाश्रम धर्म



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 49
श्लोक

असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः। नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां सन्न्यासेनाधिगच्छति॥49||

असक्त बुद्धिः सर्वत्र जित-आत्मा विगत-स्पृहः । नैष्कर्म्य-सिद्धिम् परमाम् संन्यासेन अधिगच्छति ।। ४९ ।।

शब्दार्थ

( सर्वत्र ) जिसने सबसे (बुद्धिः) अपने बुद्धि को (expectation) को (असक्तः) हटा लिया है (आत्मा) (जिसने) अपने आपको (जित) जीत लिया है (स्पृहः) जिसने अपनी इच्छाओं को (विगत) (पूरा करना) छोड़ दिया है (नैष्कर्म्य सिद्धिम्) जिसने कर्मफल पाने की इच्छा को पूरी तरह (संन्यासेन) छोड़ दिया है (परमाम् ) वह महान ईश्वर को (अधिगच्छति) पा लेता है।

अनुवाद

जिसने सबसे अपने बुद्धि को ( expectation) को हटा लिया है। (जिसने) अपने आपको जीत लिया है। जिसने अपनी इच्छाओं को पूरा करना छोड़ दिया है। जिसने कर्मफल पाने की इच्छा को पूरी तरह छोड़ दिया है। वह महान ईश्वर को पा लेता है।