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विषय नं. 55 - वर्णाश्रम धर्म



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 50
श्लोक

सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे। समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा॥50॥

सिद्धिम् प्राप्तः यथा ब्रह्म तथा आप्नोति निबोध मे।
समासेन एव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या प्ररा ।।५० ।।

शब्दार्थ

(परा) दिव्य ज्ञान (या) जिसके द्वारा (मनुष्य) (निष्ठा) ईश्वर में श्रद्धा ( प्राप्त) प्राप्त करता है (तथा) और (ब्रह्म) ईश्वर की (याद में) (सिद्धिम्) (Perfection) पूर्णता (आप्नोति) प्राप्त करता है (यथा) उस (ज्ञान को) (समासेन) संक्षिप्त में (मे) मुझसे (निबोध) समझने का प्रयास करो।

अनुवाद

दिव्य ज्ञान जिसके द्वारा मनुष्य ईश्वर में श्रद्धा प्राप्त करता है, और ईश्वर की याद में (Perfection) पूर्णता प्राप्त करता है, उस ज्ञान को संक्षिप्त में मुझसे समझने का प्रयास करो।